Saturday, September 18, 2010

बंद दरवाजे

बंद दरवाजे 


रुकिए .. यहाँ अभी सभी दरवाजे बंद है... मालिक घर से बाहर है.... मुझे जरा साज सफाई का काम दिया गया था सो थोड़ी ढेर के लिए चाबी  मालिक ने मुझे दे दी थी | अब कामचोरी का जमाना है... मै भी तो इस जमाने से हूँ... इतनी ही सजावट काफी होगी अभी....दीवारों पे कुछ काला रंग ओर रेडी मेड रंग का घोल टेम्पलेट से फैंक दिया है ...... अभी तो बहुत कुछ करना है तभी इस दरवाजे के अन्दर आ कर मन लगेगा ... पर अप्पन ठहरे एक नंबर के आलसी ओर ऊपर से मजे की बात ये की मालिक जी तो है ही नहीं..... कौन देख रहा .......भगवान् ??? अरे ! पंडित  जी कोई उपाय बता देंगे ..एक दो व्रत रख लेंगे ... ओर दीवारों के कान होते है तो अप्पून तो आँखों वाला काम कर रहे है..कानो का क्या लेना देना.... तो अब क्या करू...... क्या ये दरवाजा खोलना है... धत्त .. चाबी तो भूल आया हूँ मैं ... कहाँ   भूला ... याददास्त  भी कुछ कमजोर लग रही है....क्या करे मिलावटी खाना खाना पड़ता है...  महंगाई  है तो खाते समय भी बचत से खाता  हूँ .. चलिए चाबी तो मिल जाएगी पर अभी कमरे की सज्जा बाकी है... अब मालिक खुद आयेंगे तो करेंगे.... पर उनके आने से पहले कोई चुपके से मुझे फ़ोन कर देते तब जरा दिखावटी लीपा पोती कर दूंगा.... अब एक बार मै दरवाजा बंद कर दूंगा तो फिर ऑटोमेटिक ही बंद हो जाएगा ... चाभी डूप्लीकेट   ले के  मालिक आयेंगे...अब मेरी खैर नहीं..... जाता हूँ ... बाय ... मेरी शिकायत नहीं करना की उस रोज मै काम अधूरा छोड़ कर चला गया..........मालिक के लिए भी एक पैगाम....... स्वागत